My best friend or Bestie?

कल मेरी सबसे पुरानी सहेली वीणा का जन्म दिन था। मैंने सोचा सुबह-सवेरे दस कामों के बीच उसे मुबारकबाद देने से अच्छा रहेगा कि ऐसे समय फ़ोन करूँ जब कुछ देर फ़ुर्सत से बतिया सकूँ। इसलिये शाम की चाय निबटाकर और रात के खाने की धूम-धाम शुरू होने से पहले, आराम से पंखा चलाकर, सोफ़े पर पसरकर उसे फ़ोन किया। फ़ोन उठाते ही बोली - याद आ गया तुम्हें?

मैंने कहा - याद तो सवेरे से था, लेकिन इत्मीनान से बात करना चाहती थी।

उसकी इस बात पर मुझे बहुत मज़ा आया। कोई तो है जो मुझे इतने कम शब्दों में ताना दे सकता है। और साथ ही कोई ऐसा भी है जो इतने कम शब्दों में मेरी सफ़ाई सुन और समझ सकता है।

यह आज के इंस्टेंट रिश्तों में संभव नहीं हो सकता। आज मिले, कल साथ घूमे, परसों "बेस्टी" बन गये। एक महीने बाद एक-दूसरे के बारे में पूछिये तो हज़ार श्लोकी महाभारत के बराबर शिकायतें मिलेंगी। हो सकता है कि कुछ पशु-पक्षियों के नाम भी सुनने को मिलें, जैसे कुत्ता, लोमड़ी, भेड़िया, गिद्ध, आदि। अगर मासिक परीक्षा में पास हो गये तो साल-दो साल चल जाते हैं ऐसे रिश्ते।

लेकिन मेरे और वीणा जैसे रिश्ते की आस रखते हों तो बर्दाश्त करना सीखिये। बहुत सारा संयम और धैर्य रखने की आदत डालिये।


बचपन में हम दोनों एक ही स्कूल में पढ़ते थे। घर भी हमारे आमने सामने थे। रिक्शे से एक साथ स्कूल जाना तय हुआ। मुझे समय से पहले पहुँच कर हल्ला मचाना अच्छा लगता था। घंटी बजने के बाद प्रार्थना के दौरान मेन गेट बंद हो जाता था। देर से आने वालों का स्वागत हमारी प्रिंसिपल लीला दी की पैनी निगाहें करती थीं।

मुझे देर से आने वालों के बीच खड़ा देख कर बोलीं - शुभ्रा, तुम्हें कैसे देर हो गयी?

उनका लहजा कुछ-कुछ - "Et tu Brute!" वाला था।

मैं शर्म से पानी-पानी। मन ही मन सोचा - अब कभी देर नहीं होने दूँगी।

लेकिन पता नहीं क्यों वीणा को रोज़ ही देर हो जाती।

मैं अपने बरामदे में रुआँसी सी टहलती रहती।

एक दिन मेरी नानी ने कहा - क्यों परेशान होती हो? किसी और के साथ चली जाया करो या कहो तो तुम्हारे लिये अलग रिक्शा बँधवा दें।

मैंने मुश्किल से आँसू रोक कर कहा - किसी और के साथ नहीं जायेंगे। हमारी दोस्त है वो, उसी के साथ जायेंगे।


पिछले साल वीणा की नातिन की अट्ठारहवीं सालगिरह थी। सबका इतना आग्रह था कि मुझे कोलकाता जाना पड़ा।

वीणा की बेटी ने पार्टी में मेरा परिचय देते हुए कहा - ये मेरी बेटी मेघना की बेस्ट फ्रेंड हैं, जो ख़ास इस फंक्शन के लिये दिल्ली से आयी हैं। यह बात और है कि संयोगवश ये मेरी माँ की भी बेस्ट फ्रेंड हैं।

तो दोस्तो! मेरे हिसाब से दोस्ती धीमी आँच पर पकी खीर सरीखी होनी चाहिये। तभी वह मीठी और सोंधी बनती है।


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