गगन से गीत फूल झरते

गगन से गीत फूल झरते।
देह नदी श्वासों की नैया तिरता स्वर का कुँवर कन्हैया
साधों की ब्रजबाला चल दी शंकित पग धरती।
मुस्कानों के यमुना तट पर विश्वासों के वंशी वट तर
इच्छाओं के गोवर्धन को आश्वासित करते।
मन सागर में हो उद्वेलन शेषशायी जीवन अनुचिंतन
फैले जब जब गरल धरा पर अमृत कण ढरते।

- Shakuntala Sharma

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