फ्रॉम मी टु यू ---- सत्या सरन

समीक्षा : डॉ शुभ्रा शर्मा

समाचार क्षणिक होते हैं. एक दिन की खबर चाहे कितनी ही बड़ी क्यों न हो, अगले दिन बासी हो जाती है. आज का समाचार-पत्र कल की रद्दी बन जाता है. लेकिन उसी समाचार-पत्र में कुछ सामग्री ऐसी भी होती है, जो शाश्वत होती है और सदा प्रासंगिक रहती है क्योंकि उसमें जीवन के अनुभवों का निचोड़ होता है. इसीलिए पत्र-पत्रिकाओं के संपादकों की दैनिक, साप्ताहिक अथवा पाक्षिक टिप्पणियां कभी बासी नहीं होतीं. उदाहरण के लिए जनसत्ता में बरसों-बरस छपने वाला प्रभाष जोशी का कॉलम 'कागद कोरे' अगर शाश्वत न होता तो क्या पाँच-पाँच जिल्दों में प्रकाशित होता? या फिर अंग्रेजी पत्रिका फेमिना में छपने वाला सत्या सरन का कॉलम 'मी टु यू' अगर आज भी प्रासंगिक न होता तो पुस्तक के रूप में कैसे प्रकाशित होता?

हाल में प्रकाशित यह पुस्तक आकार में छोटी है, मात्र 212 पृष्ठ हैं, इसलिए लेटे, बैठे या यात्रा करते हुए आराम से पढ़ी जा सकती है. हर लेख स्वतन्त्र है और लगभग दो से ढाई पृष्ठ का है. कुछ शब्द चित्र हैं, कुछ अमिट छाप छोड़ने वाली घटनाएं हैं और कुछ सोचने के लिए मजबूर करने वाली टिप्पणियां हैं. कई जगह ऐसा लगता है कि उस दिन, कुछ ऐसी ही परिस्थिति में आपने भी ठीक ऐसा ही सोचा था. बस, आप भूल गए मगर सत्या जी ने उसे कलमबद्ध कर दिया.

जैसे चौराहे पर भीख मांगती वह कम उम्र की लड़की जिसे देखकर आपने सोचा था कि अगर वह साफ-सुथरी होती, अपनी हम-उम्र लड़कियों जैसे कपडे पहने होती तो कितनी सुन्दर दिखती ......
या जैसे बाथरूम में तौलिये पर चढ़ती मकड़ी को आपने सिर्फ पानी फेंककर हटाना चाहा था, लेकिन वह नाली में बह गयी थी और तब क्षण भर के लिए आपको इस अकारण हत्या पर पछतावा हुआ था .....
या जैसे उस दिन आपने चलती ट्रेन से एक बड़ा शांत, सुरम्य गाँव देखकर सोचा था....काश आप अपनी उम्र का संध्याकाल यहाँ बिता पाते....

पुस्तक के लेखों को पाँच शीर्षकों के अंतर्गत रखा गया है. मुलाकातें, विचार, शहरी जीवन, दृष्टिकोण और प्रकृति. मुलाकातों में से सबसे दिलचस्प है सौन्दर्य प्रतियोगिता में भाग लेने वाली लड़कियों की मदर टेरेसा से भेंट, जिसमें वे अनायास विनम्रता और करुणा का पाठ सीखती हैं. गुजरात के किसी अनाम ठिकाने की भूतपूर्व महारानी, जब फैशन शूट के लिए गए सामान्य जन को चाय पर बुलाती हैं और उन्हें अपने जीवन के अनुभव सुनाती हैं तो कहीं अधिक गरिमामयी और भव्य लगने लगती हैं. वह टैक्सी ड्राईवर भी, जिसके साथ सफ़र करना सत्या जी को ऐसा लगता है जैसे नाना-दादा से लिफ्ट ली हो.

सत्या जी की पर्यावरण विषयक चिंता बार-बार सामने आती है. कभी वे सड़क निर्माण के लिए काटे जाने वाले पेड़ों के लिए दुखी होती हैं तो कभी पोलीथिन- प्लास्टिक के गैर-ज़रूरी इस्तेमाल से परेशान होती हैं. इस सन्दर्भ में एक लेख खास तौर पर उल्लेखनीय है, जिसमें एक पढ़े-लिखे सभ्य-सुसंस्कृत परिवार की रेल-यात्रा का वर्णन है. महिला सफाई का बहुत ध्यान रखती हैं, बार-बार अपने बच्चे के हाथ-मुंह टिशु पेपर से पोंछती हैं, खाना-पीना ढंककर रखती हैं, इस्तेमालशुदा कप-प्लेट-चम्मच पोलीथिन बैग में जमा करती जाती हैं और जब गाड़ी एक सुरम्य जंगल के बेहद खूबसूरत झरने के पास से गुज़रती है तब उस बैग को झरने में उछाल देती हैं. कहानी ख़त्म. कोई टिप्पणी नहीं. शायद सत्या जी चाहती हैं कि आप उस महिला के अपराध की गंभीरता को स्वयं समझें.

पुस्तक में सत्या सरन का प्रकृति से लगाव जगह जगह बिखरा पड़ा है. चाहे बचपन की स्मृतियों से उभरा ब्रह्मपुत्र का किनारा हो या कार पार्क में मंडराता भौंरा, इवनिंग वॉक के दौरान पीले फूलों से ढँका कोना हो या मॉनसून की पहली बारिश का ड्रामाई अंदाज़, या फिर आधी रात को सूनी सड़क पर साथ-साथ चलता चाँद - महानगर की तमाम व्यस्तताओं के बीच वे यह सब देख लेती हैं, यह भी किसी उपलब्धि से कम नहीं है.

पुस्तक की भूमिका में गुलज़ार साहब ने लिखा है कि उन्हें कवि होना चाहिए था ..... कि फ्रॉम मी टु यू के लेख वास्तव में कविता ही हैं. लेकिन मेरा मानना है कि अच्छा हुआ सत्या सरन ने ये सारी बातें कविता के रूप में न कहकर अपने कॉलम में कहीं, क्योंकि आज की वास्तविकता यह है कि लेख या सम्पादकीय तो हम चलते-फिरते पढ़ भी लेटे हैं, मगर कविता पढने के लिए मानस बनाना पड़ता है. मैं ऐसे बहुत से लोगों को जानती हूँ जो कविता देखते ही पन्ना पलट देते हैं. कहते हैं - भई, ये कविता-शविता हमारे बस कि बात नहीं है.

सत्या सरन ने 1993 से 2004 तक फेमिना का संपादन किया और इस दौरान निरंतर ये कॉलम लिखा. इसे वे पत्रिका के अंतिम पृष्ठ पर छापती थीं क्योंकि उनका मानना है कि चाय का पूरा कप ख़त्म कर चुकने के बाद जब अंतिम घूँट के साथ जमी हुई चीनी मिलती है तो बड़ा सुखद आश्चर्य होता है और वह मिठास देर तक आपके साथ बनी रहती है. इस पुस्तक की भी यही कैफियत है.
                                                                  

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