जय जगदीश हरे
कल एक मित्र ने फेस बुक पर आनंद मठ का वह बड़ा ही सुमधुर गीत - जय जगदीश हरे - पोस्ट किया। एक अन्य मित्र ने सवाल उठा दिया कि गीता दत्त और हेमंत कुमार का गाया यह गीत आखिर कह क्या रहा है। सच ही तो है जिसने कवि जयदेव की कोमल कान्त पदावली नहीं पढ़ी है, वो तो बेचारे सिर्फ़ "जय जगदीश हरे" की टेक ही पकड़ पाते हैं।
ये सवाल एक समय मेरे मन में भी उठा था। उन दिनों बनारस में मेरी नानी की भजन मंडली हर शनिवार को जमा होती थी और भजन-कीर्तन से मन बहलाती थी। मैं बराबर नए गीतों की खोज में रहती थी। उन दिनों रफ़ी साहब का गाया - पाँव पडूँ तोरे श्याम ब्रज में लौट चलो, सुलक्षणा पंडित का गाया - कैसे कान्हा का राधा भरोसा करे और शारदा सिन्हा का गाया - जगदम्बा घर में दियरा बार अइनी हो सीखा और भजन मंडली में गाया। लेकिन परिचित धुनों वाले गीत ज़्यादा जमते थे । सोचा जय जगदीश हरे गाकर देखूँ। लेकिन शब्द पकड़ायी में नहीं आ रहे थे। कहीं से सुन लिया कि यह जयदेव के गीत गोविन्द में मिलेगा। बस, मिल गया कोड़ा! अब क्या चाहिए था? जीन, लगाम और घोड़ा।
गीत गोविन्द की तलाश शुरू हो गयी। पहले तो अपने घर की पुस्तकों में ही ढूँढा। नहीं मिली तो एक दिन चौखम्बा जाकर खरीद लायी। कोई प्रमाणिक संस्करण तो नहीं मिला लेकिन अपना काम चल गया क्योंकि जय जगदीश हरे के शब्द मिल गये। हिंदी अनुवाद पढ़कर अर्थ समझ ही लिया था कि यह दशावतार स्तोत्र है, जिसमें विष्णु के मत्स्य, कच्छप, वराह, नृसिंह, वामन, परशुराम, राम, बलराम, बुद्ध और कल्कि अवतारों का वर्णन है। चूँकि जयदेव जगन्नाथ स्वामी के भक्त थे इसलिए वे इन्हें विष्णु के नहीं बल्कि अपने आराध्य श्रीकृष्ण के अवतार मानते हैं। और इसीलिए दस अवतारों में राम के बाद कृष्ण का नहीं बल्कि बलराम का नाम गिनाते हैं।
जय जगदीश हरे को मैंने तभी भजन-मंडली वाली डायरी में उतार लिया था, जो आज काम आया। तो लीजिये जयदेव कृत दशावतार का परायण कीजिये, जो मेरी डायरी से उठकर मेरे ब्लॉग तक आ रहा है।
ये सवाल एक समय मेरे मन में भी उठा था। उन दिनों बनारस में मेरी नानी की भजन मंडली हर शनिवार को जमा होती थी और भजन-कीर्तन से मन बहलाती थी। मैं बराबर नए गीतों की खोज में रहती थी। उन दिनों रफ़ी साहब का गाया - पाँव पडूँ तोरे श्याम ब्रज में लौट चलो, सुलक्षणा पंडित का गाया - कैसे कान्हा का राधा भरोसा करे और शारदा सिन्हा का गाया - जगदम्बा घर में दियरा बार अइनी हो सीखा और भजन मंडली में गाया। लेकिन परिचित धुनों वाले गीत ज़्यादा जमते थे । सोचा जय जगदीश हरे गाकर देखूँ। लेकिन शब्द पकड़ायी में नहीं आ रहे थे। कहीं से सुन लिया कि यह जयदेव के गीत गोविन्द में मिलेगा। बस, मिल गया कोड़ा! अब क्या चाहिए था? जीन, लगाम और घोड़ा।
गीत गोविन्द की तलाश शुरू हो गयी। पहले तो अपने घर की पुस्तकों में ही ढूँढा। नहीं मिली तो एक दिन चौखम्बा जाकर खरीद लायी। कोई प्रमाणिक संस्करण तो नहीं मिला लेकिन अपना काम चल गया क्योंकि जय जगदीश हरे के शब्द मिल गये। हिंदी अनुवाद पढ़कर अर्थ समझ ही लिया था कि यह दशावतार स्तोत्र है, जिसमें विष्णु के मत्स्य, कच्छप, वराह, नृसिंह, वामन, परशुराम, राम, बलराम, बुद्ध और कल्कि अवतारों का वर्णन है। चूँकि जयदेव जगन्नाथ स्वामी के भक्त थे इसलिए वे इन्हें विष्णु के नहीं बल्कि अपने आराध्य श्रीकृष्ण के अवतार मानते हैं। और इसीलिए दस अवतारों में राम के बाद कृष्ण का नहीं बल्कि बलराम का नाम गिनाते हैं।
जय जगदीश हरे को मैंने तभी भजन-मंडली वाली डायरी में उतार लिया था, जो आज काम आया। तो लीजिये जयदेव कृत दशावतार का परायण कीजिये, जो मेरी डायरी से उठकर मेरे ब्लॉग तक आ रहा है।
प्रलय पयोधि जले धृतवानसि वेदम्
विहित वहित्र चरित्रमखेदम्
केशव धृत मीन शरीर। जय जगदीश हरे।
क्षितिरतिविपुलतरे तव तिष्ठति पृष्ठे
धरणि-धरण-किण चक्र गरिष्ठे
केशव धृत कच्छप रूप। जय जगदीश हरे।
वसतिदशनशिखरे धरणी तव लग्ना
शशिनिकलंक कलेव निमग्ना
केशव धृत शूकर रूप। जय जगदीश हरे।
तव करकमलवरे नखमद्भुतशृङ्गं
दलित हिरण्यकशिपु तनु भृङ्गं
केशव धृत नरहरि रूप। जय जगदीश हरे।
छलयसि विक्रमेण बलिमद्भुत वामन
पदनखनीरजनित जन पावन
केशव धृत वामन रूप। जय जगदीश हरे।
क्षत्रियरुधिरमये जगदपगतपापम्
स्नपयसि पयसि शमितभवतापम्
केशव धृत भृगुपति रूप। जय जगदीश हरे।
वितरसि दिक्षु रणे दिक्पति कमनीयम्
दशमुख मौलि बलिं रमणीयम्
केशव धृत रघुपति रूप। जय जगदीश हरे।
वहसि वपुषि विशदे वसनं जलदाभम्
हलहति भीति मिलित यमुनाभम्
केशव धृत हलधर रूप। जय जगदीश हरे।
निन्दसि यज्ञविधेरहह श्रुतिजातम्
सदय हृदय दर्शित पशुघातम्
केशव धृत बुद्ध शरीर। जय जगदीश हरे।
म्लेच्छनिवहनिधने धरयसि करवालम्
धूमकेतुमिव किमपि करालम्
केशव धृत कल्कि शरीर। जय जगदीश हरे।
श्रीजयदेव कवेरिदमुदितमुदारम्
श्रृणु सुखदं शुभदं भवसारम्
केशव धृत दशविध रूप। जय जगदीश हरे।
Apke adbhut gyan ka Prasad aise hee milta rahe Shubhra didi....
ReplyDeleteबढिया.....
ReplyDeleteइस समृद्ध करने वाली जानकारी के लिए हार्दिक आभार प्रिय शुभ्रा जी.
ReplyDeleteWow good information didi
ReplyDeleteबस इतना याद है ... बचपन में ( 4-5 बरस की उम्र )... सुदूर बस्तर के गीदम में ... हमारी सुबह 'जय जगदीश हरे ' से हुआ करती थी... बड़ी सी नर्सरी के बीचोँ बीच घर था ... बाउंड्री वॉल के उस तरफ बड़े से तालाब पर शिव जी का मन्दिर ... पण्डित जी और हमारा परिवार शायद साथ ही जागते थे ...ये सुनते हुए...
ReplyDeleteआरती करूँ शंकर की करूँ नटवर भोले शंकर की ....������ कितनी पुरानी याद ...��
You are right Jiji. Have been listening this melodious and pious song for years, and it was no way we could get access to its lyrics. But this did not matter as long heard it. Wanted to sing, but could not due to lyrics.
ReplyDeleteबहुत बढ़िया जीजी, पहली बार गीत समझ में आया। अब इसे गीतायन पर चढ़ाएंगे, कल छुट्टी के दिन।
ReplyDeleteArchna Pant :
ReplyDeleteहाय दीदी ! इसे तो हम बचपन से सुनते आ रहे हैं ... दशावतार भी जानते समझते थे (मम्मी ने गीत गोविन्द पढ़ा था) पर ये कृष्ण के अवतार न होने वाली बात आज मालूम पड़ी !
आप तो सचमुच अपने नाम को सार्थक करतीं हैं ... यूँ ही तो नहीं दिया आपका नाम मौसाजी मौसीजी ने !
कितनी सुन्दर व्याख्या और पूरी पदावली ... सचमुच अद्भुत !
काफी दिनों के प्रयास के बाद मैं यग गाना नेट पर खोजा जो बचपन में टाकीज में पिक्चर शुरू होने के पहले बजता था
ReplyDelete