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पलातक / राहगीर

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मैं इतिहास की विद्यार्थी रही हूँ। मानव सभ्यता का इतिहास पढ़ा तो जाना कि आदिम काल में मानव किसी तरह के बंधनों से जकड़ा हुआ नहीं था। मुक्त गगन में उड़ते पंछी की तरह जब, जिधर, जी किया -चल पड़ा, जहाँ रात ढली -सो गया, जब किसी दृश्य से मन भर गया - नए दृश्य की तलाश में बढ़ गया। उस आदिम मनुष्य की तुलना में हम कितने बंधनों से घिरे हुए हैं -घर, परिवार, शहर, परिवेश, शिक्षा, रोज़ी-रोटी, बोली-भाषा, खान-पान और भी न जाने क्या-क्या। चाहें भी तो इनसे पीछा छुड़ाकर कहीं नहीं जा सकते। कभी बहुत सोच-विचार कर, बड़ी योजनायें बनाकर, बहुत सा पैसा ख़र्चकर, कहीं जाते भी हैं तो यही सोचते रह जाते हैं - घर का ताला ठीक से बंद किया था या नहीं? बालकनी की खिड़की खुली तो नहीं रह गयी? कोई नल टपकता तो नहीं रह गया? मैं उन लोगों को बहुत बड़े बहादुरों की श्रेणी में रखती हूँ जो घर-परिवार का मोह-बंधन तोड़कर दूर परदेस चले जाने की हिम्मत रखते हैं। जैसेकि मेरे बेटे का दोस्त चन्द्रशेखर। बी ए करने के बाद किसी एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी में दाख़िला लेने न्यूज़ीलैंड चला गया। कुछ दिन पढ़ा, कुछ दिन टिफ़िन सर्विस चलायी, फिर ग़ैर-अंग्रेज़ी-भाषियों को ...

सिनेमा के रंग, बनारसी मस्ती के संग - (भारती सिनेमा)

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आदरणीय काशीनाथ सिंह जी वाली अस्सी चौमुहानी से दुर्गाकुंड की ओर जाने वाली सड़क पर एक छोटा सा, नन्हा-मुन्ना सा, सिनेमा हॉल था - भारती। हमारे बचपन के दिनों (1962-1969) में भी वह बहुत पुराना हो चुका था और वहाँ सिर्फ़ रियायती दर पर पुरानी फ़िल्में दिखाई जाती थीं। संयोग से वो हॉल मेरे घर के बहुत पास था। सड़क से जायें तो आधा किलोमीटर और अगर साधुबेला आश्रम वाली पतली गली पकड़कर लपक जायें तो बस चार मिनट। भारती सिनेमा के इतने नज़दीक होने का प्रताप था कि हमने देव आनंद और राज कपूर की तमाम पुरानी फ़िल्में देख ली थीं। जाल, बाज़ी, जाली नोट, काला पानी, काला बाज़ार, आवारा, श्री 420, और ऐसी ही और कई। दिलीप कुमार की फ़िल्में देखने में हमारी दिलचस्पी कम थी मगर कभी-कभी माँ-मौसी का साथ देने के लिए देखनी पड़ती थीं। नानी हमारी, अशोक कुमार की बहुत ज़बरदस्त फ़ैन थीं इसलिये किस्मत और संग्राम भी देखीं। सबसे ज़्यादा ज़ुल्म तब हुआ, जब अशोक कुमार-सुचित्रा सेन की फ़िल्म ममता घूमती-घामती भारती में प्रदर्शित हुई और हमें एक सप्ताह में चार बार देखनी पड़ी। यही एक हॉल था, जिसमें हमें "भले घर की लड़कियों की तरह" पूरे परिवार क...