मन्वन्तर क्यों ?
आप सोच रहे होंगे कि शुभ्रा शर्मा के ब्लॉग का नाम "मन्वन्तर" क्यों है। क़ायदे से तो शुभ्रायण या शुभ्रा कहिन टाइप कोई नाम होना चाहिए था। तो दोस्तो! सच्चाई यही है कि 'शुभ्रा' यह नाम मुझे स्कूल जाने की उम्र में मिला। सन् बयालीस के दिनों में लाठी-गोली खाने वाले माँ-बाप ने राष्ट्र भक्ति की झोंक में बंकिम बाबू के वंदे मातरं से शब्द उधार लेकर मुझे शुभ्रा बना दिया। हो सकता है इसके पीछे कुछ हाथ मेरे गोरे रंग का भी रहा हो। वरना शुभ्रा के बजाय सुजला या सुफला भी तो कही जा सकती थी। जो भी हो स्कूल में मेरा नाम शुभ्रा ही लिखाया गया। और आज तक, जब भी कोई मेरे नाम को लिखने या बोलने में अटकता है तो मैं उसे वंदे मातरं का हवाला देती हूँ।
सबसे रोचक घटना हुई १९८८ के आस-पास। उन दिनों मैं दिल्ली दूरदर्शन के लिए अनुबंध पर काम करती थी। दूरदर्शन की उस समय की लोकप्रिय अनाउंसर ज्योत्स्ना को कोई उद्घोषणा रिकॉर्ड करानी थी। उन्हें किसी शब्द को लेकर दुविधा थी, जिसे दूर कराने वे पत्रिका कार्यक्रम की प्रोड्यूसर दुर्गावती जी के कमरे में आईं। दुर्गा दीदी ने हस्बेमामूल उन्हें मेरे पास भेज दिया। हम बात कर ही रहे थे तभी शरद दत्त जी अंदर आये। उन्होंने हमें देखा और बोले -- वंदे मातरं। सब लोग चौंक गए। लेकिन मैं समझ गयी। मैंने कहा - देख लीजिये। शुभ्रा -ज्योत्स्ना दोनों सामने खड़ी हैं।
लेकिन यह तो हुआ मेरे स्कूल वाले नाम का क़िस्सा। अपनी बंगाली बहू के शब्दों में कहूँ तो मेरे इस `भालो नाम' से पहले मेरा एक `डाक नाम' यानी पुकारने का नाम भी था। वह नाम मेरे माता-पिता ने नहीं नानी ने रखा था। मेरे जन्म से पहले उन्होंने सोहराब मोदी की फिल्म झाँसी की रानी देखी थी और तभी तय कर लिया था कि अपनी नातिन का नाम मनु रखेंगी और उसे साहसी और निडर बनायेंगी।
साहस और निडरता के बारे में आप सब अंदाज़ लगाते रहें। इस ब्लॉग पर मैंने मनु के अन्तर-मन की बातें सामने लाने का बीड़ा उठाया है इसीलिए नाम दिया है - मन्वन्तर।
Manvantar ki gathaye sunne ke liye hum utsukt hai
ReplyDeleteहमे इंतजार रहेगा ब्लॉग का...
ReplyDeleteहमे इंतजार रहेगा ब्लॉग का...
ReplyDeleteमन्वन्तर कालगणना का बोधक है। मनु के अन्तर को मन्वन्तर? बात कुछ हजम नहीं हुई। हां ब्लाग का स्वागत है।
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