असाढ़ का पहला दिन
कई बरसों बाद ऐसा सुयोग आया है कि जेठ महीने की पूर्णिमा का चाँद देखने छत पर निकली तो लू के थपेड़ों ने नहीं, शीतल मंद बयार ने शरीर का ताप मिटाया। वैसे कल रात चाँद पूरे से थोड़ा सा कम, यानी चौदहवीं का चाँद लग रहा था लेकिन पोथी-पत्रे के चक्करों से बचने के लिए मैंने कल पूर्णिमा और आज जेठ बदी प्रतिपदा मान ली है। तो कल की ठंडी हवाओं से उम्मीद बँध गयी थी कि शायद कालिदास के शब्दों को सही साबित करते हुए असाढ़ का पहला दिन घन-घटाओं से लैस होगा। आषाढस्य प्रथमदिवसे मेघमाश्लिष्टसानुं वप्रक्रीडापरिणतगजप्रेक्षणीयं ददर्श।। कुबेर के शाप के कारण एक साल के लिए अपने घर से और अपनी प्रिया से दूर विरही यक्ष ने आषाढ़ के पहले दिन बादलों से लिपटी पहाड़ की चोटी को देखा, तो उसे ऐसा लगा जैसे कोई हाथी खेल-खेल में अपने सर की टक्कर से उसे गिराने की कोशिश कर रहा हो। मैं भी कोई ऐसा ही नज़ारा देख पाने की आस में सुबह से अपने आठवीं मंज़िल के घर के खिड़की-दरवाज़े खोले बैठी थी। लेकिन दस बजते-न-बजते सूरज की वक्र दृष्टि का प्रहार झेलना कठिन हो गया, तब निराश होकर खिड़कियाँ बंद कर दीं और परदे खींच कर नीम अँधेरा ...