Salil Chowdhury- एक विलक्षण प्रतिभा

सलिल चौधरी, एक नाम, एक व्यक्तित्व, एक अदभुत संगीतकार, एक विलक्षण प्रतिभा। हिन्दी फ़िल्म संगीत के स्वर्णिम दौर के सबसे महत्वपूर्ण हस्ताक्षरों में से एक - सलिल चौधरी। शांत चेहरे और बैचेन नज़रों के पीछे रचनात्मकता का गहरा समुद्र छुपाये, सलिल दा ने न जाने कितनी कालजयी रचनाओं को जन्म दिया। उन्होंने लगभग ७५ हिन्दी फिल्मों और २६ मलयालम फिल्मों के अलावा बांग्ला, तमिल, तेलुगु, कन्नड, गुजराती, मराठी, असमिया और ओडिया फिल्मों में भी संगीत दिया और क्या खूब दिया ! सलिल चौधरी का जन्म १९ नवम्बर १९२२ को बंगाल के दक्षिण चौबीस परगना जिले के एक गाँव में हुआ था। पिता ज्ञानेन्द्र चौधरी आसाम के चाय बागान में डॉक्टर थे और पाश्चात्य शास्त्रीय संगीत के शौक़ीन। बचपन से सलिल घर के भीतर उनके रिकॉर्ड और बाहर गूँज रहे बागान मज़दूरों के गीत सुन सुनकर बड़े हुए। कहते हैं कि आठ साल की उम्र में ही वे उम्दा बाँसुरी बजाने और गाने लगे थे। बड़े भाई के ऑर्केस्ट्रा की बदौलत कई और वाद्य बजाना सीख गए, जिनमें इसराज, वॉयलिन और पियानो प्रमुख थे। उनके पिता चाय बाग...